Saturday 16 July 2016

16 JUL 1917-14 MAY1978 JAGDISHCHANDRA MATHUR

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reedh ki haddi... - YouTube

KONARK Hindi Play - YouTube

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Jun 17, 2012 - Uploaded by Yogesh Tripathi
Playwright is Jagdish Chandra Mathur and some minor chages done by Yogesh Tripathi. Music by Nagin ...

NATAKKAR JAGDISH CHANDRA MATHUR HINDI BOOK price at ...

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Vijay Ki Vela Hindi Audiobook - YouTube

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Nov 21, 2013 - Uploaded by Exordium Productions
Check out the Hindi Grammar series - https://www.youtube.com/playlist?list ...

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Oct 14, 2008 - Uploaded by lovelyzone29
Pramod Mathur 125,696 views. 29:14. Jine Tukde Hone Dil ... Jagdish ChandraBishnoi 145 views ...

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Aug 4, 2010 - Uploaded by bishnoimahipal
Pramod Mathur 125,696 views. 29:14. Jambheshwar sabd ... Jagdish ChandraBishnoi 145 views. 18 ...

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Sep 5, 2010 - Uploaded by sanjay4uenjoy
A act on famous hindi play named "Reed Ki Haddi" - acted by UTA group of amature artists. An effort by young ...

reedh ki haddi .flv - YouTube

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May 11, 2012 - Uploaded by Laughing Tissues
reedh ki haddi ka natak bahuth achaaa hei !. Read more. Show less. Reply 1. Comment failed to post ...

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Mar 30, 2013 - Uploaded by Subodh Seth
... kalika - Duration: 7:32. Jagdish chandra Rai 387 views ... Amit Mathur 1,286 views. 15:44. Happy Holi Rio ...

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Jagdish Chandra Mathur - Wikipedia, the free encyclopedia

जगदीशचंद्र माथुर - विकिपीडिया

https://hi.wikipedia.org/wiki/जगदीशचंद्र_माथुर
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जगदीशचंद्र माथुर (जन्म १६ जुलाई, १९१७) हिंदी के उन साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने आकाशवाणी में काम करते हुए ...


Jagdish Chandra Mathur Rachanawali (Vol. 1-4)

rajkamalprakashan.com/.../jagdish-chandra-mathur-rachnawali-vol-...
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जन्म: 16 जुलाई, 1917, शाहजहाँपुर (उ.प्र.)। शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेजी) इलाहाबाद विश्वविद्यालय। सन् 1941 में आई.सी.एस. परीक्षा ...

jagadishachandr mathur - भारतकोश ज्ञान का हिन्दी ...

en.bharatdiscovery.org/india/जगदीशचन्द्र_माथुर
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jagadishachandr mathur (angrezi: Jagdish Chandra Mathur, janm:16 julaee, 1917 - mrityu: 14 mee, 1978) hindi ke prasiddh sahityakaron men se hain jinhonne ...

List of book's titles with their author like 'JAGDISH CHANDRA MATHUR'

www.jainbookagency.com/booksearch.aspx?...JAGDISH%20CHANDRA%20MATH...
9 Records - 3, Jagdish Chandra Mathur Rachnawali (Vol I-IV) (Women Studies ) (In Hindi) · Jagdish Chandra Mathur, 2009, Rs.2800. 4, Laat Ki Vapsi (Novels) (IN ...

Jagdish Chandra Mathur Profiles | Facebook

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Amazon.in: Jagdish Chandra Mathur: Books

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Jagdish Chandra Mathur Rachnawali (Vol I-to-IV). 1 January 2009. by Jagdish Chandra Mathur. Currently unavailable. Show results for. Books; Literature ...

Jagdish Chandra Mathur, UP Theatre Personality - Indianetzone

www.indianetzone.com › ... › Theatre Personalities of Uttar Pradesh
May 17, 2012 - Jagdish Chandra Mathur was Hindi playwright who chose themes from history of India and also Indian myths and Indian mythology. He also ...

Today in Indian History - Events for July 16 - IndianAge.Com

www.indianage.com/show.php
16-July-1917, Jagdishchandra Mathur, modern Hindi playwright, was born. 16-July-1929, Indian Council of Agricultural Research, an autonomous apex national ...
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Jagdish Chandra Mathur
Playwright
Jagdish Chandra Mathur was a Hindi playwright and writer. He came into fame by his first play Konark. He was born in a village near Khurja. His other famous works includes Phela Raja, Shardiya, Dasrath Nandan, Bhor ka Tara and Oo mere Sapne. Wikipedia
BornJuly 16, 1917, Khurja
Died1978
Dahisar West, Mumbai, Maharashtra - From your Internet address - Use precise location
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जगदीशचंद्र माथुर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
जगदीशचंद्र माथुर (जन्म १६ जुलाई१९१७हिंदी के उन साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने आकाशवाणी में काम करते हुए हिन्दी की लोकप्रयता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण के ऐसे ऐतिहासिक समय में जगदीशचंद्र माथुर, आईसीएस, ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने ही 'एआईआर' का नामकरणआकाशवाणी किया था। टेलीविज़न उन्हीं के जमाने में वर्ष १९५९ में शुरू हुआ था। हिंदी और भारतीय भाषाओं के तमाम बड़े लेखकों को वे ही रेडियो में लेकर आए थे। सुमित्रानंदन पंत से लेकर दिनकर और बालकृष्ण शर्मा नवीन जैसे दिग्गज साहित्यकारों के साथ उन्होंने हिंदी के माध्यम से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सूचना संचार तंत्र विकसित और स्थापित किया था।[1]

जीवन परिचय[संपादित करें]

जन्म 1917 ई. खुर्जा जिला बुलंदशहरउत्तर प्रदेश में हुआ।
प्रारंभिक शिक्षा खुर्जा में हुई। उच्च शिक्षा युइंग क्रिश्चियन कॉलेजइलाहाबाद और प्रयाग विश्वविद्यालय में हुई। प्रयाग विश्वविद्यालय का शैक्षिक वातावरण औऱ प्रयाग के साहित्यिक संस्कार रचनाकार के व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका हैं। 1939 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. (अंग्रेज़ी) करने के बाद 1941 ई. में 'इंडियन सिविल सर्विस' में चुन लिए गए।
सरकारी नौकरी में 6 वर्ष बिहार शासन के शिक्षा सचिव के रूप में, 1955 से 1962 ई. तक आकाशवाणी - भारत सरकार के महासंचालक के रूप में, 1963 से 1964 ई. तक उत्तर बिहार (तिरहुत) के कमिश्नर के रूप में कार्य करने के बाद 1963-64 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका में विज़िटिंग फेलो नियुक्त होकर विदेश चले गए। वहाँ से लौटने के बाद विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हुए 19 दिसम्बर 1971 ई. से भारत सरकार के हिंदी सलाहकार रहे। इन सरकारी नौकरियों में व्यस्त रहते हुए भी भारतीय इतिहास और संस्कृति को वर्तमान संदर्भ में व्याख्यायित करने का प्रयास चलता ही रहा।

साहित्यिक जीवन[संपादित करें]

अध्ययनकाल से ही उनका लेखन प्रारंभ होता है। 1930 ई. में तीन छोटे नाटकों के माध्यम से वे अपनी सृजनशीलता की धारा के प्रति उन्मुख हुए। प्रयाग में उनके नाटक 'चाँद', 'रुपाभ' पत्रिकाओं में न केवल छपे ही, बल्कि इन्होंने 'वीर अभिमन्यु', आदि नाटकों में भाग लिया। 'भोर का तारा' में संग्रहीत सारी रचनाएँ प्रयाग में ही लिखी गईं। यह नाम प्रतीक रूप में शिल्प और संवेदना दोनों दृष्टियों से माथुर के रचनात्मक व्यक्तित्व के 'भोर का तारा' ही है। इसके बाद की रचनाओं में समकालीनता और परंपरा के प्रति गहराई क्रमशः बढ़ती गई है। व्यक्तियों, घटनाओं और देशके विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों से प्राप्त अनुभवों ने सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

प्रमुख कृतियाँ[संपादित करें]

नाटक[संपादित करें]

  • भोर का तारा' (1946 ई.),
  • कोणार्क' (1950 ई.),
  • ओ मेरे सपने' (1950 ई.)
  • शारदीया' (1959 ईं),
  • दस तस्वीरें' (1962 ई.), '
  • परंपराशील नाट्य' (1968 ई.),
  • पहला राजा' (1970 ई.)
  • जिन्होंने जीना जाना' (1972 ई.)

समालोचना[संपादित करें]

माथुर जी के नाटकों में कौतूहल और स्वच्छंद प्रेमाकुलता है। 'भोर का तारा' में कवि शेखर की भावुकता पर्यावरण में घटित करने या रचने का मोह भी प्रारंभ से मिलता है। परंतु समसामयिक को अनुभव के रूप में अनुभूत करके उसकी प्रामाणिकता को संस्कृति के माध्यम से सिद्ध करने का जो आग्रह उनके नाटकों में हैं उसकी रचनात्मक संभावना का प्रमाण 'कोणार्क' में है। परंपरा को माध्यम और संदर्भ के रूप में प्रयोग करने की कला में माथुर सिद्दहस्त हैं। परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि यही उनका सब कुछ है, बल्कि उन्होंने रीढ़ की हड्डी आदि ऐसे नाटक भी लिखे जिनका संबंध समाज के भीतर के बदलते रिश्तों और मानवीय संबंधों से है। 'शारदीया' के सारे नाटकों में समस्या को व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने का आभास अवश्य है, परंतु समस्या मात्र का परिवृत्त इतना छोटा है कि वह किसी व्यापक सत्य का आधार नहीं बन पाती। वस्तुतः माथुर छायावादी संवेदना के रचनाकार हैं। यह संवेदना 'भोर का तारा' से लेकर 'पहला राजा' तक में कमोबेश मिलती है। यह अवश्य है कि यह छायावादिता नाटक के विधागक संस्कार और यथार्थ के प्रति गहरी संसक्ति के कारण 'कोणार्क' और 'पहला राजा' में काफ़ी संस्कारित हुई है।
'कोणार्क' उत्तम नाटक है। इतिहास, संस्कृति और समकालीनता मिलकर निरवधिकाल की धारणा और मानवीय सत्य की आस्था को परिपुष्ट करते हैं। घटना की तथ्यता और नाटकीयता के बावजूद महाशिल्पी विशु की चिंता और धर्मपद का साहसपूर्ण प्रयोग, व्यवस्था की अधिनायकवादी प्रवृत्ति से लड़ने और जुझने की प्रक्रिया एवं उसकी परिणति का संकेत नाटक को महत्वपूर्ण रचना बना देता है। कल्पना की रचनात्मक सामर्थ्य और संस्कृति का समकालीन अनुभव कोणार्क की सफल नाट्य कृति का कारण है। कोणार्क के अंत और घटनात्मक तीव्रता तथा परिसमाप्ति पर विवाद संभव है, परंतु उसके संप्रेषणात्मक प्रभाव पर प्रश्न चिन्ह संभव नहीं है। 'पहला राजा' नाटक के रचना-विधान और वातावरण को 'माध्यम' और 'संदर्भ' में रूप में प्रयोग करके लेखक ने व्यवस्था और प्रजाहित के आपसी रिश्तों को मानवीय दृष्टि से व्याख्यायित करने का प्रयास किया है। स्पुतनिक, अपोलो आदि के प्रयोग के कारण समकालीनता का अहसास गहराता है। पृथु, उर्वी, कवष आदि का प्रयास और उसका परिणाम सब मिलकर नाटक की समकालीनता को बराबर बनाए रखते हैं। पृथ्वी की उर्वर शक्ति, पानी और फावड़ा-कुदाल आद् को उपयोग रचना के काल को स्थिर करता है।
'परंपराशील नाट्य' महत्वपूर्ण समीक्षा-कृति है। इसमें लोक नाट्य की परंपरा और उसकी सामर्थ्य के विवेचन के अलावा नाटक की मूल दृष्टि को समझाने का प्रयास किया गया है। रामलीला, रासलीला आदि से संबद्ध नाटकों और उनकी उपादेयता के संदर्भ में परंपरा का समकालीन संदर्भ में महत्व और उसके उपयोग की संभावना भी विवेच्य है। 'दस तसवीरें' और 'इन्होंने जीना जाना है' रचनाकार के मानस पर प्रभाव डालने वाले व्यक्तियों की तस्वीरें और जीवनियाँ हैं, जिनका महत्व उनके रेखांकन और प्रभावांकन की दृष्टि से अक्षुण्ण है।[2]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. ऊपर जायें "सूचना संचार क्राँति के जनक माथुर साहब" (एसएचटीएमएल). बीबीसी. अभिगमन तिथि: 2007.
  2. ऊपर जायें वर्मा, धीरेन्द्र (१९८५). हिन्दी साहित्य कोश भाग-२. वाराणसी, भारत: ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, उ.प्र.. प॰ १९८-१९९.

JAGDISH CHANDRA MATHUR

Born: July 16, 1917
Died: May 14, 1978
जन्म: 16 जुलाई, 1917, शाहजहाँपुर (उ.प्र.)।
शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेजी) इलाहाबाद विश्वविद्यालय। सन् 1941 में आई.सी.एस. परीक्षा उत्तीर्ण। अमेरिका में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया।
कृति संदर्भ: सन् 1936 में प्रथम एकांकी ‘मेरी बाँसुरी’ का मंचन व ‘सरस्वती’ में प्रकाशन। पाँच एकांकी नाटकों का संग्रह ‘भोर का तारा’ सन् 1946 में प्रकाशित। इसके बाद ‘ओ मेरे अपने’ (1950), ‘मेरे श्रेष्ठ रंग एकांकी’, ‘कोणार्क’ (1951), ‘बंदी’ (1954), ‘शारदीया’ (1959), ‘पहला राजा’ (1969), ‘दशरथ नन्दन’ (1974) तथा ‘कुँवरसिंह की टेक’ (1954) और ‘गगन सवारी’ (1958) के अलावा दो कठपुतली नाटक भी लिखे। ‘दस तस्वीरें’ और ‘जिन्होंने जीना जाना’ में रेखाचित्र संस्मरण हैं। ‘परम्पराशील नाट्य’ उनकी समीक्षा : ष्टि का परिचायक है। ‘बहुजन-सम्प्रेषण के माध्यम’ जगदीश जी की ‘जन संचार’ पर विशिष्ट पुस्तक मानी गई है।
सन् 1944 में बिहार के सुप्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्व वैशाली महोत्सव का बीजारोपन किया।
सम्मान: विद्यावारिधि की उपाधि से विभूषित, कालिदास अवार्ड और बिहार राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित।
कार्य: ऑल इंडिया रेडियो में महानिदेशक रहे, फिर सूचना और प्रसारण मंत्रालय में संयुक्त सचिव। गृह मंत्रालय में हिन्दी सलाहकार के पद पर भी कार्य किया। हारवर्ड विश्वविद्यालय के विजिटिंग फैलो के अतिरिक्त अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स से जुड़े थे।
निधन: 14 मई, 1978, दिल्ली में।

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